अच्छी सेहत सबसे बड़ा धन है। यदि स्वस्थ देह ही न हो, तो माया किस काम की। शायद इसी विचार को हमारे मनीषियों ने युगों पहले ही भांप लिया था। उत्तम स्वास्थ्य और स्थूल समृद्धि के बीच की जागृति का पर्व है धनतेरस, जो प्रत्येक वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। आध्यात्मिक मान्यताओं में दीपावली की महानिशा से दो दिन पहले जुंबिश देने वाला यह काल धन ही नहीं, चिकित्सा जगत की समृद्ध विरासत का प्रतीक है या काल यक्ष यक्षिणीयों के जागरण दिवस के रूप में भी प्रख्यात है।
यक्ष-यक्षिणी स्थूल जगत के उन चमकीले तत्वों के नियंता कहे जाते हैं, जिन्हें जगत दौलत मानता है। लक्ष्मी और कुबेर यक्षिणी और यक्ष माने जाते हैं। यक्ष-यक्षिणी ऊर्जा का वह पद कहा जाता है, जो हमारे जीने का सलीक़ा नियंत्रित करता हैं। सनद रहे कि धन और वैभव का भोग बिना बेहतर सेहत के सम्भव नहीं है, लिहाज़ा ऐश्वर्य के भोग के लिये कालांतर में धन्वन्तरि की अवधारणा सहज रूप से प्रकट हुई, जो नितांत वैज्ञानिक प्रतीत होती है। आम धारणा दीपावली को भी धन का ही पर्व मानती है, जो सही नहीं है। दिवाली तो आंतरिक जागरण की बेला है। यह सिर्फ़ धन ही नहीं हर बल्कि हर प्रयास के सिद्धि की घड़ी है। धन का पर्व तो धनतेरस को ही माना जाता है। यह पर्व औषधि और स्वास्थ्य के स्वामी धन्वंतरि का भी दिन है।
यक्ष-यक्षिणी स्थूल जगत के उन चमकीले तत्वों के नियंता कहे जाते हैं, जिन्हें जगत दौलत मानता है। लक्ष्मी और कुबेर यक्षिणी और यक्ष माने जाते हैं। यक्ष-यक्षिणी ऊर्जा का वह पद कहा जाता है, जो हमारे जीने का सलीक़ा नियंत्रित करता हैं। सनद रहे कि धन और वैभव का भोग बिना बेहतर सेहत के सम्भव नहीं है, लिहाज़ा ऐश्वर्य के भोग के लिये कालांतर में धन्वन्तरि की अवधारणा सहज रूप से प्रकट हुई, जो नितांत वैज्ञानिक प्रतीत होती है। आम धारणा दीपावली को भी धन का ही पर्व मानती है, जो सही नहीं है। दिवाली तो आंतरिक जागरण की बेला है। यह सिर्फ़ धन ही नहीं हर बल्कि हर प्रयास के सिद्धि की घड़ी है। धन का पर्व तो धनतेरस को ही माना जाता है। यह पर्व औषधि और स्वास्थ्य के स्वामी धन्वंतरि का भी दिन है।


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